दुमका में लापरवाही की बड़ी मिसाल — गुनगुन पेट्रोल पंप के पास नाला बनी मौत की वजह, नगर परिषद चुप्पी साधे बैठी

दुमका — कुछ समय पहले गुनगुन पेट्रोल पंप के ठीक बगल वाले बड़े नाले में एक युवती की गिर्ने से मृत्यु हो चुकी है, फिर भी उस जगह पर आज तक कोई स्थायी सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए हैं। यह केवल एक दुर्घटना नहीं — यह स्थानीय प्रशासन और नगर परिषद की गंभीर उपेक्षा और ज़िम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कहानी है।

घटना के बाद स्थानीय लोग पहले ही इस नाले की ख़तरे की तरफ बार-बार आगाह कर चुके हैं। वहाँ रेलिंग नहीं है, न चेतावनी बोर्ड, और रात में कोई रोशनी नहीं — ऐसे में हर गुजरती-फिरती ज़िंदगी जोखिम में है। इसके बावजूद नगर परिषद या संबंधित विभाग ने न तो नाले को भरने की व्यवस्था की और न ही उसे ढकने/बाउंड्री लगाने का काम किया।

क्या हुआ — और क्या होना चाहिए था

हादसे के बाद तात्कालिक तौर पर अस्थायी चेतावनी लगनी चाहिए थी, नाले के किनारे रेलिंग लगाई जानी चाहिए थी, और रात में रोशनी की व्यवस्था कर दी जानी चाहिए थी। सुरक्षित विकल्पों में नाले को भरना, कंक्रीट ढक्कन लगाना या स्थायी बाउंड्री बनवाना शामिल हैं। पर इन सरल और सस्ती सावधानियों के बावजूद प्रशासन की सुस्ती साफ़ दिखती है — और यही बात आम लोगों में गुस्सा और भय पैदा कर रही है।

लोगों की नाराज़गी — सवाल यहीं खड़े होते हैं

स्थानीय दुकानदार, राहगीर और पास के निवासियों का सवाल है — क्या नगर परिषद को किसी और के गिरने का इंतज़ार है? क्या हमें बार-बार मरते हुए लोगों का सबूत देना होगा तभी वे कुछ करेंगे? यह निष्क्रियता जानबूझ कर हुई उपेक्षा है या सिस्टम की लापरवाही — जनता दोनों ही जवाबों पर संदेह कर रही है।

“हमने कई बार कहा, पर कोई सुनने वाला नहीं — कल हमारी बारी भी हो सकती है।” — एक स्थानीय दुकानदार (गिलान पारा के पास)

आरोप नहीं — बस तथ्य और मांगें

हम किसी पर आरोप लगाने से पहले बस इतना पूछते हैं: जब एक इंसान की जान चली जा चुकी है, तब सामान्य सुरक्षा उपाय क्यों नहीं किए गए? यह कोई राजनीतिक बहस नहीं है — यह सार्वजनिक सुरक्षा का मुद्दा है। नगर परिषद को तुरंत इन कदमों का पालन करना चाहिए:

  1. नाले को तत्काल अस्थायी तरीके से ढकना/बाउंड्री लगवाना।
  2. रात की रोशनी और स्पष्ट चेतावनी बोर्ड लगाना।
  3. घटना की सार्वजनिक रिपोर्ट और जिम्मेदार अधिकारी कौन हैं, इसकी जानकारी देना।
  4. भविष्य में ऐसी लापरवाही रोकने के लिए एक संवेदनशील कार्ययोजना जारी करना।

अगर प्रशासन चुप रहा — तो क्या करें

लोकल समुदाय को अब इंतज़ार छोड़ कार्रवाई करनी होगी — शिकायत दर्ज कराना, स्थानीय पार्षद/विधायक को तार-तार करना, सोशल मीडिया पर मामला उठाना और स्थानीय मीडिया को involve करना। जब प्रेस कवरेज और जनदबाव बढ़ेगा तब प्रशासन चालू होगा — यह कड़वा सच है।

निष्कर्ष — ज़िम्मेदारी तय होने चाहिए

एक जान की कीमत किसी विभागीय फ़ॉर्म या मीटिंग से कम नहीं — और जब प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाए, तो उसका नतीजा वही होता है जो हम देख चुके हैं। अब समय है कि नगर परिषद केवल शब्दों में माफी न मांगे बल्कि असली और तात्कालिक कदम उठाकर यह साबित करे कि जनता की सुरक्षा उसके लिए प्राथमिकता है। वरना यह केवल एक और दुखद कहानी बनकर रह जाएगी — और अगली बार शिकार हम में से कोई भी हो सकता है।

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