सूखे कद्दू से इंटरनेशनल गोल्ड मेडल | पुटरु दा की अनोखी कला

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देवघर, झारखंड (23 अक्टूबर 2025): क्या आपने कभी ये सोचा है कि कैसे एक मामूली सा सूखा कद्दू, जिसे अक्सर बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, एक शानदार कलाकृति बन सकता है? देवघर के मशहूर कलाकार मार्कण्डेय जजवारे, जिन्हें लोग प्यार से ‘पुटरु दा’ कहते हैं, ने ऐसा कर दिखाया है। उनके बनाए सूखे कद्दू की कलाकृति ने अभी हाल ही में 46वीं अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन कला प्रदर्शनी में गोल्ड मेडल जीता है। ये जीत सिर्फ पुटरु दा की काबिलियत का सबूत नहीं है, बल्कि ये भी दिखाती है कि कैसे स्थानीय चीजों से भी दुनिया में नाम कमाया जा सकता है।

पुटरु दा कौन हैं? एक कलाकार की अनकही यात्रा

मार्कण्डेय जजवारे, जिन्हें पुटरु दा भी कहते हैं, देवघर के नागड़ी इलाके के रहने वाले हैं। ये जगह बाबा बैद्यनाथ धाम से जुड़ी है, जो भगवान शिव का फेमस ज्योतिर्लिंग है। उन्हें बचपन से ही कला का शौक था। वे अपने आस-पास के गांवों और रोजमर्रा की जिंदगी से आइडिया लेते हैं। उनका खास तरीका है, जिसे ‘पुत्रु कृत्य’ कहते हैं। इसमें वे सूखे फल, बीज और कद्दू जैसी चीजों को काटकर बढ़िया मूर्तियां बनाते हैं।

पुटरु दा ने भले ही कभी आर्ट की कोई खास ट्रेनिंग नहीं ली, पर उनकी बनाई चीजें दिल को छू जाती हैं। वे कहते हैं, मेरे लिए तो आर्ट जिंदगी को देखने का एक तरीका है। मैं तो सूखे कद्दू जैसी बेकार चीज में भी नई जान डाल देता हूं। उन्होंने पहले बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की एक मूर्ति भी बनाई थी, जो देवघर मार्ट जैसे लोकल प्लेटफॉर्म पर मिलती है। वो मूर्ति दिखाती है कि वे कितने ध्यान से काम करते हैं और धर्म को कितनी इज्जत देते हैं।

स्वर्ण पदक जीतने वाली कलाकृति: सूखे कद्दू का जादू

इस बार पुटरु दा ने अपनी कला में एक परिवार दिखाया है – माँ-बाप और उनका बच्चा। उन्होंने सूखे कद्दू पर बड़ी बारीकी से नक्काशी की है, जिससे माता-पिता का प्यार और बच्चे की मासूमियत साफ़ झलकती है। इसे देखकर पहली बार में तो यकीन ही नहीं होता कि ये एक सूखे कद्दू से बना है, क्योंकि ये इतना असली लगता है।

दिल्ली की मणिकर्णिका आर्ट गैलरी ने 10 से 20 अक्टूबर 2025 तक 46वीं अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन कला प्रदर्शनी का आयोजन किया। इसमें देश-विदेश के 46 जाने-माने कलाकारों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 15 को गोल्ड मेडल मिला। मणिकर्णिका आर्ट गैलरी, जो पहले भी कई ऑनलाइन प्रदर्शनियां कर चुकी है (जैसे कि 39वीं मंडला आर्ट प्रदर्शनी), ने पुटरु दा के काम को बहुत अच्छा बताया। गैलरी का कहना है कि इस बार प्रदर्शनी में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए प्राकृतिक चीजों से बनी कला को दिखाया गया था।

देवघर में खुशी की लहर, लेकिन चुनौतियां भी बरकरार

इस इंटरनेशनल सम्मान से देवघर के कलाकारों में खुशी की लहर है। यहाँ के लोग कह रहे हैं, पुटरु दा ने दिखा दिया कि गांव की मिट्टी भी दुनिया में नाम कमा सकती है। ये पुरस्कार सिर्फ उनकी जीत नहीं है, बल्कि झारखंड के गांव के कलाकारों के लिए भी एक प्रेरणा है। कुछ समय पहले देवघर ने राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार में भी नाम कमाया था, जब यहाँ की टीचर श्वेता शर्मा को नए तरीके से पढ़ाने के लिए सम्मान मिला था।

लेकिन, पुटरु दा जैसे कलाकारों को अभी भी चीजों और बाज़ार की कमी से जूझना पड़ता है। उनकी चाहत है कि यहाँ के अधिकारी कला वर्कशॉप और प्रदर्शनियों के लिए और मदद करें। उन्होंने कहा, यह पुरस्कार मेरे लिए बस शुरुआत है। अब मैं और भी ऐसी चीजें बनाऊंगा, जो परिवार के महत्व को दिखाएं।

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